Tuesday, November 14, 2017

বুধ গ্রহের প্রভাব

बुध ग्रह का प्रभाव
प्रथम भाव प्रथम भाव में बुध होने पर जातक दूसरों का प्रिय, ज्ञानवान, चिंतक, त्यागी, लेखक अथवा प्रकाषक, गणितज्ञ, कवि, चिकित्सक, ज्ञान पिपासु तथा अपने धर्म पर मनन करने वाला होता है वह गंभीर व्यक्तित्व वाला, चरित्रवान, मधुरभाषी तथा संयमी होता है। उसमें किसी एक विषय में पारंगत होने तथा दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता होती है। वह वाक्पटु और दूसरों को सहज ही मोहने वाला होता है। आयु के 10 वर्ष से ही प्रभावपूर्ण दिखने लगता है।
द्वितीय भाव द्वितीय भाव का बुध जातक को सुवक्ता, धनी, सलाहकार, बिचैलिया, लेखक व प्रकाषन से आय करने वाला बनाता है। वह अपने प्रयास से अत्यधिक धन कमाने वाला, यात्रा प्रेमी, पाप से दूर रहने वाला, पवित्र तथा ज्ञान पिपासु होता है। वह जीवन में अच्छी वस्तुओं का शौकीन, परिवार का प्रिय तथा अपने कौषल विषेष रूप से वाणी द्वारा धन कमाने वाला होता है। आयु के 26वें वर्ष में धन की हानि तथा 36वें वर्ष में आकस्मिक धन लाभ।
तृतीय भाव तृतीय भाव का बुध जातक को साहसी, सुविधा में रूचि, समाज का सहायक, व्यवसाय से धन कमाने वाला तथा शीघ्र मैत्री करने वाला बनाता है। रिष्तेदारों से लाभ लेने वाला, ज्योतिष, अध्यात्म आदि रहस्यमय विषयों में गहरी रुचि रखने वाला, खुषियां चाहने वाला परन्तु स्वार्थी नहीं। संयमी, दयालु, सभ्य, निरंतर यात्रा करने वाला तथा अच्छी वस्तुओं का संग्रह करने वाला होता है। आयु के 12वें वर्ष में भाग्य लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
चतुर्थ भाव चतुर्थ भाव का बुध जातक को पैदाइषी परिवर्तनषील बनाता है। चंचल, संपत्तिवान, बुद्धिमान, रिष्तेदारों से रहित, विपरीत लिंग वालों का प्रिय तथा बेषर्म बनाता है। अचल सम्पत्तियों से लाभ व आय प्राप्त करने वाला, अच्छे वाहन वाला, संगीत का प्रेमी, गायन में रुचि रखने वाला तथा अच्छी स्मरण शक्ति वाला बनाता है। आयु का 22वां वर्ष विषेष लाभकारी होता है।
पंचम भाव पंचम भाव का बुध जातक को जन्मजात संगीत का ज्ञाता बनाता है। जीवन साथी से प्रेम पाने वाला, बुद्धिमान, संतान युक्त बनाता है। बड़ों और ज्ञानी जनों का आदर करने वाला, भक्ति तथा रहस्यवाद में गहरी रुचि वाला होता है। वह धनवान होता है। राजा का प्रिय, सलाहकार तथा अपनी बुद्धिमत्ता से लोगों को चमत्कृत करने वाला होता है परंतु बुध के पीड़ित होने पर वह सभी अच्छे गुणों से रहित तथा बुरी आदतों की ओर उन्मुख हो जाता है तथा जुए आदि का आदी हो सकता है। सामान्यतया वाद-विवाद में कुषल तथा सृजनात्मक गतिविधियों वाला होता है। आयु के 26वें वर्ष में माता के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।
षष्ठम् भाव षष्ठम् भाव में बुध जातक को आत्मसंयमी, अति बुद्धिमान तथा मातृभक्त बनाता है। वह संबंधियों से विरोध, आलसी, क्रूर प्रकृति का, चिन्ताग्रस्त तथा नौकरों अथवा सेवकों द्वारा कष्ट पाने वाला होता है। वह लेख अथवा प्रकाषन द्वारा आय करता है। औषधियों में रुचि, स्वास्थ्य के प्रति जागरूक तथा भोजन के विषय में अच्छा ज्ञान रखता है। आयु के तीसरे वर्ष में शारीरिक कष्ट तथा 36वें वर्ष में शत्रु भय होता है।
सप्तम भाव सप्तम् भाव का बुध जातक को ज्ञानवान बनाता है। उसका भाग्य विवाह के बाद उदित होता है, ऐसा व्यक्ति पूरी तरह से हंसमुख होता है और बच्चों के साथ विषेष संबंध स्थापित करता है जहां बच्चे भी खुलकर अपने मन की बात उस व्यक्ति से कर सकते हैं। विपरीत सेक्स के प्रति एक स्वाभाविक सा आकर्षण होता है और विपरीत लिंग के व्यक्ति भी उसे पसंद करते हैं। ऐसा व्यक्ति बहुत अच्छा होता है, साधारणतया सत्यता का पालन करता है और व्यापार में उसकी बुद्धि प्रखर होती है जिसके फलस्वरुप वह अपने व्यक्तित्व और बुद्धि से लोगों को प्रभावित कर आसानी से धन कमा सकता है। ऐसा व्यक्ति अच्छा लेखक होता है और उसके भाग्यवर्धक वर्ष होते हैं 17 या 22।
अष्टम भाव अष्टम् भाव का बुध, जातक को कोमल स्वभाव, अच्छा मेजबान, धनी, सरकार से अच्छा पद अथवा अधिकारिक स्थान प्रदान करता है। वह सहजता से धन कमाने वाला, सदा सकारात्मक सोच वाला, नेकचलन, षत्रुओं पर विजयी तथा विदेष में मान पाने वाला होता है। आयु के 14वें वर्ष में स्वास्थ्य कुछ नरम हो सकता है।
नवम भाव नवम् भाव का बुध जातक को ज्ञानवान, धनी, कुषल कलाकार, धार्मिक, समर्पित पत्नी तथा बुद्धिमान संतान प्रदान करता है। वह सात्विक आय करने वाला, साधु-संतों का मान करने वाला तथा निरंतर विदेष यात्राएं करने वाला होता है। वह दयावान, सभ्य, बहुत-से सेवको वाला तथा अपने कुल और परिवार का नाम ऊंचा करने वाला होता है। आयु के 19वें वर्ष में माता को कष्ट तथा 32वें वर्ष में भाग्य की हानि हो सकती है।
दषम भाव दषम् भाव का बुध जातक को ज्ञानवान, शास्त्रों का ज्ञाता, प्रसिद्ध तथा सात्विक मार्ग से जीवन में उन्नति करने वाला बनाता है। रिष्तेदारों से प्रेम रखने वाला तथा उनकी सहायता करने वाला, तीक्ष्ण बु़िद्ध का स्वामी, निपुण, विनोदी, कुषल वक्ता तथा जीवन में विभिन्न उपक्रम करने में कुषल होता है। दलाली से अच्छी आय वाला किंतु कमजोर बुध विपरीत परिणाम देता है। आयु के 16वें अथवा 29वें वर्ष में निष्चय ही धन लाभ प्राप्त करता है।
एकादष भाव एकादष भाव का बुध जातक को कलाओं में रुचि लेने वाला, ज्योतिष तथा मस्तिष्क विज्ञान में रुचि रखने वाला बनाता है। वह एक कुषल लेखक, शासन से लाभ पाने वाला, गुप्त विद्याओं में गहरी रुचि रखने वाला तथा संगीत कला का अच्छा ज्ञाता भी होता है। वह अति बुद्धिमान, अच्छा जीवन साथी तथा परिवार का सम्मान बढ़ाने वाला होता है। जीवन के 45वें वर्ष में वह विषेष लाभ अर्जित करता है।
द्वादष भाव द्वादष भाव का बुध जातक को समाज में अपमान का भागी तथा अनुत्पादक कार्यों में लिप्त करता है। कमजोर बुध मानसिक कष्ट देता है तथा वह दूसरों के प्रभाव में सहज ही आ जाता है और दुख पाता है किंतु उच्च का बुध अध्यात्म, गुप्त विद्याओं में रुचि तथा अत्यधिक सम्मान प्रदान करता है। जीवन का 22वां तथा 44वां वर्ष दुर्भाग्यपूर्ण हो सकता है।
विभिन्न राषियों में बुध का परिणाम
मेष
मेष राषि में बुध व्यक्ति को दुर्जन का मित्र तथा जीवन में कमी तथा उदासीनता का वातावरण प्रदान करता है। वह शराब व अन्य नषों का प्रेमी तथा अपने दुव्र्यवहार द्वारा बदनामी कमाने वाला हो सकता है। आर्थिक कष्ट व तनाव समय-समय पर होते रहते हैं जिनके चलते वह कभी-कभी अतिसंवेदनषील हो जाता है।
वृष
वृष राषि में बुध जातक को अपव्ययी तथा बड़े-बुजुर्गों के पद चिह्नों पर न चलने वाला बनाता है। वह जीवन में विभिन्न कष्टों से गुजरता है तथा उनके कारण पष्चाताप करता है। आर्थिक हानि तथा संतान की चिंता सदा लगी रहती है।
मिथुन
मिथुन राषि में बुध जातक की माता को मानसिक कष्ट देता है। उसके विचारों का दूसरों द्वारा विरोध होता है। परन्तु जीवन साथी व संतान से प्रसन्नता प्राप्त होती है। वह अपने कार्य में कुषल, बहुत बुद्धिमान तथा अपनी वाणी व लेखन से लोगों को प्रभावित करने वाला होता है।
कर्क
कर्क राषि का बुध जातक को विदेष का वासी तथा कभी-कभी बिना ईच्छा वाले स्थान पर भी रहना पड़ सकता है। उसे जीवन में विभिन्न प्रकार के दुख व चिंताओं का सामना करना पड़ता है। वह कविता व लेखन में रुचि रखने वाला तथा यदि इसे ही व्यवसाय बनाए तो नाम, धन व यष कमाने वाला होता है तथा उसके अनेक मित्र होते हैं।
सिंह
सिंह राषि में बुध जातक को पुत्र व जीवन साथी से कष्ट देता है। कभी-कभी गलत विचारों से प्रेरित हो जाता है और अपने लक्ष्यों को पाने में उसे बहुत कठिनाई होती है। इन सबसे बढ़कर वह साहसी, हिम्मती, प्रयत्नषील, कार्य शैली में भव्यता लिए रहता है किंतु कभी-कभी अपनी बुद्धिमत्ता का उचित प्रयोग नही कर पाता है।
कन्या
कन्या राषि का बुध जातक को सभी प्रकार की सुख-सुविधा, अतिभाग्यवान, भव्य, तेजस्वी, बहुत बुद्धिमान और चरित्रवान बनाता है। वह अच्छे व्यवहार वाला, नीतिवान, कुषल लेखक, शस्त्रज्ञ तथा शत्रुओं को परास्त करने वाला होता है। वह ईष्वर से विषेष संबंध रखने वाला, कुषल कार्यकर्ता, धनी तथा जीवन में उन्नति करने वाला होता है।
तुला
तुला राषि में बुध व्यक्ति को शारीरिक कष्ट, कमजोर देह परंतु विभिन्न कलाओं में निपुणता प्रदान करता है। जीवन साथी से अच्छा तालमेल, अपूर्व बुद्धि, दूसरों की सहायता करने वाला परंतु व्यापार में हानि उठाने वाला बनाता है। वह संतुलित विचारों वाला, तीक्ष्ण बुद्धि वाला, अच्छा विचारक तथा दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता वाला होता है।
वृष्चिक
वृष्चिक राषि में बुध की उपस्थिति जातक को रिष्तेदारों से विरोध तथा दूसरों से लड़ाई का कारक बनाती है। उसे अनेच्छित स्थान पर रहना पड़ सकता है। उसे विपत्ति संताप, शारीरिक कष्ट का सामना करना पड़ सकता है। इन्हें धन की हानि तथा अनिच्छा से दूसरों की सेवा करनी पड़ सकती है।
धनु
धनु राषि में बुध जातक को जीवन में समय-समय पर आर्थिक कष्ट देता है। किसी भी नए उपक्रम को शुरु करने में हमेषा बाधा आती है तथा अपने ही लोगों से सदा विरोध का सामना करना पड़ सकता है। उसे संकटों, विरोध और क्लेषों से सामना करना पड़ता है। उसमें तुरंत समझने की योग्यता तथा चित्रवत स्मृति होती है किंतु गलत लोगों से वे जल्दी ही प्रभावित हो जाते हैं।
मकर
मकर राषि में बुध जातक को बुरे और दुव्र्यसनी लोगों से मैत्री का कारक होता है। उच्च वर्ग में मैत्री की ईच्छा रहती है किंतु अंतद्र्वंद्व के चलते कुछ विषेष लाभ नहीं प्राप्त कर पाते। प्रभुत्व पाने के लिए वह झूठ बोलने से भी नहीं चूकते। अतिव्ययी तथा झूठी प्रतिष्ठा व मान के कारण अपव्यय करने वाला होता है तथा अपनी योजनाओं में हानि उठाने वाला होता है।
कुंभ
कुम्भ राषि में बुध आर्थिक हानि तथा अकारण समस्याओं का कारक होता है। मित्रों के बीच मान की हानि तथा कार्यस्थल पर अस्थिरता को जन्म देता है। वह दूसरों के लिए नौकरी करने पर ही संतुष्टि व स्थिरता पा सकते हैं। ये नए विचारों को समझने में कुषल होते हुए भी, परंपरावादी, रूढ़िवादी होने के कारण उसका लाभ नहीं ले पाते।
मीन
मीन राषि में बुध व्यक्ति को शारीरिक रोगों से पीड़ित करता है, वह जीवन में विभिन्न दुख उठाने वाला, संकटों का सामना करने वाला तथा परिश्रमी होते हुए भी अधिक सम्पत्ति नहीं बना पाता। वह अनिष्चित मत वाला तथा एक ही विचार पर स्थिर नहीं रहने वाला होता है। कभी-कभी वह अपने ही कुविचारों का षिकार हो जाता है। अपने स्वयं का व्यवसाय करने पर वह गलत निर्णयों से भी परेषान रहता है।
Comments


Show More React

সপ্তম ভাব

*कुंडली में सप्तम भाव से पत्नी का भाव होता है, तथा इसका कारक शुक्र होता है, जब सप्तम भाव ,सप्तमेश तथा शुक्र शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट होतो, पत्नी सुख मिलता है और ये पाप प्रभाव अथवा अशुभ भाव में होतो पत्नी सुख में बाधा आती है। निम्न योग पत्नी सुख में बाधा डालते है।*
*१. जब लग्न, द्वितीय , चतुर्थ, सप्तम, अष्टम , द्वादश भाव में मंगल शत्रु राशी में हो.*
*२. चतुर्थ भाव का मंगल घर में क्लेश करता है।*
*३. सप्तम भाव में शनि नीच (मेष) अथवा शत्रु राशी का हो तथा उस पर मंगल की दृष्टी होतो, दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।*
*४. सप्तम भाव में बुध +शुक्र की युती ४५-५० साल की उम्र में पत्नी सुख मिलता है।*
*५. सप्तम भाव पर सूर्य, राहू का प्रभाव जातक को अपने पत्नी/पति से अलग करते है। अथवा तलाक करवा देते है।*
*६. लग्न (१) भाव में सूर्य+राहू की युती दाम्पत्य जीवन में बाधा डालते है।*
*७. लग्न में सूर्य जातक को क्रोधी बनाता है।*
*८. सप्तम भाव में सूर्य पत्नी को क्रोधी बनाता है।*
*९. सप्तम में नीच राशी का चन्द्रमा (८) वृश्चिक राशी का अथवा पाप राशी का चन्द्रमा हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टी होतो, जातक अपनी पत्नी/पति को खो बैठता है।*
*१०. यदि सप्तम भाव में शनि +चन्द्र की युती जातक को विधवा स्त्री दिलवा देते है।*
*११. यदि सप्तमेश राहू या केतू से युक्त होतो, जातक पर-स्त्री गामी होता है।*
*१२. सप्तम भाव में राहू जातक को दूसरे की स्त्री में आशक्त करता है।*
*१३. सप्तम में मकर राशी का गुरू (१०) होतो दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।*
*१. चन्द्र +राहू युति होतो – मानसिक चिंता , पति / पत्नी की मानसिक स्थिति में असंतुलन होता है।*
*२. मंगल+राहू की युति से – अड़ियल स्वभाव अथवा एक दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुँचाना।*
*३. शुक्र +राहू की युति से – जातक के पत्नी के अलावा अन्य स्त्री से सम्बन्ध के कारण अथवा माता-पिता की इच्छा के बिना विवाह कारण तलाक।*
*४. सूर्य+राहू – पति, पत्नि के पद , ओहदे अथवा आर्थिक स्थिति को लेकर मतभेद , तथा तलाक की नौबत।*
*५. शनि +राहू – एक दूसरे से अलग रहने के कारण , अशांति तथा तलाक।*
*६. बुध+राहू -दिमागी सोच में असमानता के कारण अशांति तथा तलाक।*
*७. मंगल+शुक्र+राहू -घरेलू अशांति -दुःख तथा अंत तलाक।*
*८. शुक्र+चन्द्र +राहू – प्रेम में घाटा ही घाटा। स्त्रीयों से हानि, घरेलू अशांति। पराई औरतों से सम्बन्ध अंत में तलाक।*
*यदि उपरोक्त ग्रह योग २-७ -११ वे भाव में होतो , ज्यादा प्रभावशाली है॥(उपरोक्त योग होने पर अंत तलाक में होता है )*
*अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में जाने -*
*१. यदि दूसरे भाव में पाप ग्रह शनि,मंगल, राहू, केतू इनमे कोई एक या दो से अधिक ग्रह शत्रु राशी में बैठे हो, अथवा इन ग्रहों की दूसरे भाव पर दृष्टी होतो, संचित धन का नाश कर देते हैं।*
*२. यदि कोई पापी ग्रह शनि, मंगल, सूर्य अष्टम में बैठ कर सप्तम दृष्टी से दूसरे भाव को देखेगे तो धन का नाश करेगी, इसमे शर्त यह है कि दूसरे भाव की राशी इनकी खुद की राशी ना हो।*
*३. यदि ५ वे भाव में स्थित शनि १० दृष्टी से दूसरे भाव को, मंगल ७ वे भाव से ८ वी दृष्टी से दूसरे भाव को देखता है तो, धन का नाश होगा।*
*४. यदि राहू या केतू ६ थे भाव में स्थित होकर ९ वी दृष्टी से भाव दूसरे भाव को देखेगे तो धन का नाश कर देंगे।*
*५. यदि दूसरे भाव में सूर्य+शनि अथवा सूर्य+राहू होतो, राज प्रकोप से धन का नाश होता है।*
*६. यदि ११ वे भाव में कोई भी ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल,बुध, गुरु, शुक्र, शनि होतो, वे जातक को धन लाभ कराते है. ११ वे भाव में स्थित ग्रह जिन वस्तुओं के कारक होते है, उन वस्तुओं के कारोबार से जातक को धन-लाभ होता है।*
*७. राहू, केतू ११ वे भाव में होतो, धन लाभ में रूकावट डालते है। आय में विलम्ब करते है। यह ग्रह अचानक रूका हुआ धन दिला देते है।*
*८. यदि १२ वे भाव में सूर्य+शनि की युति होतो , मुकदमे बाज़ी में धन का नाश होता है।*
*९. यदि दूसरे भाव का स्वामी और ११ वे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो जातक निर्धन हो जाता है।*
*१०. यदि दूसरे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो, जातक के पास धन नहीं होगा।*
*११. यदि ११ वे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो, जातक कमाता जायेगा और खर्च होता जायेगा।*
*जानिए की सरकारी नौकरी किस को मिल सकती है...*
*१. यदि १० भाव में मंगल हो, या १० भाव पर मंगल की दृष्टी हो,*
*२. यदि मंगल ८ वे भाव के अतिरिक्त कही पर भी उच्च राशी मकर (१०) का होतो।*
*३. मंगल केंद्र १, ४, ७, १०, या त्रिकोण ५, ९ में हो तो.*
*४. यदि लग्न से १० वे भाव में सूर्य (मेष) , या गुरू (४) उच्च राशी का हो तो। अथवा स्व राशी या मित्र राशी के हो।*
*५. लग्नेश (१) भाव के स्वामी की लग्न पर दृष्टी हो।*
*६. लग्नेश (१) +दशमेश (१०) की युति हो।*
*७. दशमेश (१०) केंद्र १, ४, ७, ७ , १० या त्रिकोण ५, ९ वे भाव में हो तो। उपरोक्त योग होने पर जातक को सरकारी नौकरी मिलती है। जितने ज्यादा योग होगे , उतना बड़ा पद प्राप्त होगा।*
*जानिये की घर से भागकर कौन शादी (लव मैरीज़ ) करते है ?*
*१. यदि छठे , सातवे , आठवे भाव में तीनों भावों में पाप ग्रह हो।*
*२. चतुर्थ भाव अथवा चतुर्थ भाव के स्वामी पर पृथकतावादी ग्रहों यथा सूर्य, शनि , राहू का प्रभाव होतो , ये जातक घर से भागकर शादी करते है।*
*(उदाहरण : कुम्भ लग्न (११) दसरे भाव में केतू , पंचम भाव (५) में चन्द्रमा +गुरू , ६ ठे भाव (६) में मंगल , सातवे भाव (७) में शनि , आठवे भाव (८) में राहू , ग्यारवें भाव (११) में बुध , बारहवें भाव में (१२) सूर्य+शुक्र ) . इस स्नातक लड़की ने घर से भागकर शादी की। इस कुंडली में उपरोक्त दोनों योग है )*
*कुंडली के विशेष योग -*
*क्या कहते हैं ? नीच राशी के ग्रह -*
*१. यदि सूर्य नीच राशी तुला (७) में हो तो, जातक पापी, साथियों की सहायता करने वाला , और नीच कर्म में तत्पर होता है।*
*२. चन्द्रमा नीच राशी वृश्चिक (८) तो जातक रोगी , धन का अपव्यय करने वाला तथा विद्वानों का संगी।*
*३. मंगल नीच राशी कर्क (४) में होतो, जातक की बुद्धि कुंठित होती है , इअसके सोचे हुए कार्य अधूरे रहते हैं। यह किसी का एहसान भूलने में देर नहीं करता है।*
*४. बुध नीच राशी मीन (१२)का होतो, जातक समाज द्रोही , बंधुओं के द्वारा अपमानित तथा चित्रकला आदि में प्रसिद्ध।*
*५. गुरु नीच राशी मकर (१०) का हो तो अपनी दशा में जातक को कलंकित करता है, तथा भाग्य के साथ खिलवाड़ करता रहता है।*
*६. शुक्र नीच राशी कन्या (६) का हो तो , जातक को मेहनत के बाद भी धन नहीं मिलता है. इसके कारण जातक को पश्चाताप होता रहता है।*
*७. शनि नीच राशी मेष (१) का हो तो, अपव्ययी , मद्यप , तथा पर स्त्री गामी होता है।*
*८. राहू नीच राशी का होने पर जातक मुकदमें जीतने वाला , लेकिन धन प्राप्त नहीं होता है।*
*९. केतू नीच राशी का होने पर जातक मलिन मन का , दुर्बुद्धि और कष्ट सहन करने वाला होता है।*
*(राहू , केतू की नीच राशी में विवाद रहता है, इसलिए नहीं बताये गये है )*
*कुंडली के विशेष योग -*
*१. चन्द्र+मंगल युती - इस युति से चन्द्र-मंगल योग का निर्माण होता ,है जिसके फल स्वरुप जातक अपने जीवन में धनवान हो जाता है , यह जातक धन-संचय करने में बहुत प्रवीण होता है। जीवन में विविध स्त्रीयों से उसका संपर्क रहता है। इसका व्यवहार चालाकी भरा होता है। यदि कुंडली में चन्द्र-मंगल अकारक होगें तो फल बदल जाएगा। यह योग २, ९, १०, और ११ वे भाव में यह योग विशेष शुभ फल देता है।*
*(उदाहरण : श्री अशोक कुमार फिल्म अभिनेता , मेष लग्न (१) में राहू+शनि , २रे भाव में चन्द्र+मंगल , ५ वे भाव में शुक्र , ६ ठे भाव में सूर्य+बुध , ७वे भाव में गुरू +केतू )*
*यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह उच्च राशी में है तो, आपको क्या देगा ? यह जानिये ?*
*१. यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो , यह आपको ज्ञानियों में पूज्य बनाएगा, सहधर्मियों में नायक , भाग्यवान , धनवान , सुख भोगने वाला बना देता है।*
*२. यदि चन्द्रमा उच्च राशी वृषभ (२) होगा तो , वह जातक को समाज में सम्मान दिलाता है, साथ ही वह जातक को हंसमुख , चंचल , विलासी स्वभाव बनाता है।*
*३. मंगल के उच्च राशी मकर (१०) का होने पर जातक बलिष्ठ , और शूरवीर होता है, यह कर्तव्य शीतलता नहीं दिखाता है। जातक राज्य की सेवा में विशेष सफलता पाता है।*
*४. यदि बुध उच्च राशी कन्या (६) का होतो, जातक को यह कुशल सम्पादक , प्रसिद्ध लेखक या कवि बनाता है। यह यश -वृद्धि से संतुष्ट रहता है , तथा समाज में सम्मान पाता है।*
*५. यदि गुरु उच्च राशी कर्क (४) का हो तो , जातक चतुर , विवेक शील , सोच- समझकर कार्य करने वाला , ऐश्वर्य वान होता है।*
*६. यदि शुक्र उच्च राशी मीन (१२) का हो जातक संगीतज्ञ , अभिनेता , उन्नत भाग्य वाला होता है।*
*७. यदि शनि उच्च राशि तुला (७) का हो तो जातक को विशेष धन की प्राप्ति होती है , अचानक धन मिलता है , सट्टे , शेयर , या लॉटरी से धन लाभ।*
*८.यदि राहू उच्च का होतो, स्पष्ट वादी , गूढ़ विद्या की प्राप्ति होती।*
*९. यदि केतू उच्च राशी का हो तो, राज्य में पदोन्नति पाता है. किन्तु जातक नीच, लम्पट, धोखेबाज़ दोस्तों से हानी पाने वाला , किसी टीम का नायक होता। है।यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो , यह आपको ज्ञानियों में पूज्य बनाएगा, सहधर्मियों में नायक , भाग्यवान , धनवान , सुख भोगने वाला बना देता है।*
*यदि चन्द्रमा उच्च राशी वृषभ (२) होगा तो , वह जातक को समाज में सम्मान दिलाता है, साथ ही वह जातक को हंसमुख , चंचल , विलासी स्वभाव बनाता है।*
*मंगल के उच्च राशी मकर (१०) का होने पर जातक बलिष्ठ , और शूरवीर होता है, यह कर्तव्य शीतलता नहीं दिखाता है। जातक राज्य की सेवा में विशेष सफलता पाता है।*
*यदि बुध उच्च राशी कन्या (६) का होतो, जातक को यह कुशल सम्पादक , प्रसिद्ध लेखक या कवि बनाता है। यह यश -वृद्धि से संतुष्ट रहता है , तथा समाज में सम्मान पाता है।**कुंडली में सप्तम भाव से पत्नी का भाव होता है, तथा इसका कारक शुक्र होता है, जब सप्तम भाव ,सप्तमेश तथा शुक्र शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट होतो, पत्नी सुख मिलता है और ये पाप प्रभाव अथवा अशुभ भाव में होतो पत्नी सुख में बाधा आती है। निम्न योग पत्नी सुख में बाधा डालते है।*
*१. जब लग्न, द्वितीय , चतुर्थ, सप्तम, अष्टम , द्वादश भाव में मंगल शत्रु राशी में हो.*
*२. चतुर्थ भाव का मंगल घर में क्लेश करता है।*
*३. सप्तम भाव में शनि नीच (मेष) अथवा शत्रु राशी का हो तथा उस पर मंगल की दृष्टी होतो, दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।*
*४. सप्तम भाव में बुध +शुक्र की युती ४५-५० साल की उम्र में पत्नी सुख मिलता है।*
*५. सप्तम भाव पर सूर्य, राहू का प्रभाव जातक को अपने पत्नी/पति से अलग करते है। अथवा तलाक करवा देते है।*
*६. लग्न (१) भाव में सूर्य+राहू की युती दाम्पत्य जीवन में बाधा डालते है।*
*७. लग्न में सूर्य जातक को क्रोधी बनाता है।*
*८. सप्तम भाव में सूर्य पत्नी को क्रोधी बनाता है।*
*९. सप्तम में नीच राशी का चन्द्रमा (८) वृश्चिक राशी का अथवा पाप राशी का चन्द्रमा हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टी होतो, जातक अपनी पत्नी/पति को खो बैठता है।*
*१०. यदि सप्तम भाव में शनि +चन्द्र की युती जातक को विधवा स्त्री दिलवा देते है।*
*११. यदि सप्तमेश राहू या केतू से युक्त होतो, जातक पर-स्त्री गामी होता है।*
*१२. सप्तम भाव में राहू जातक को दूसरे की स्त्री में आशक्त करता है।*
*१३. सप्तम में मकर राशी का गुरू (१०) होतो दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।*
*१. चन्द्र +राहू युति होतो – मानसिक चिंता , पति / पत्नी की मानसिक स्थिति में असंतुलन होता है।*
*२. मंगल+राहू की युति से – अड़ियल स्वभाव अथवा एक दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुँचाना।*
*३. शुक्र +राहू की युति से – जातक के पत्नी के अलावा अन्य स्त्री से सम्बन्ध के कारण अथवा माता-पिता की इच्छा के बिना विवाह कारण तलाक।*
*४. सूर्य+राहू – पति, पत्नि के पद , ओहदे अथवा आर्थिक स्थिति को लेकर मतभेद , तथा तलाक की नौबत।*
*५. शनि +राहू – एक दूसरे से अलग रहने के कारण , अशांति तथा तलाक।*
*६. बुध+राहू -दिमागी सोच में असमानता के कारण अशांति तथा तलाक।*
*७. मंगल+शुक्र+राहू -घरेलू अशांति -दुःख तथा अंत तलाक।*
*८. शुक्र+चन्द्र +राहू – प्रेम में घाटा ही घाटा। स्त्रीयों से हानि, घरेलू अशांति। पराई औरतों से सम्बन्ध अंत में तलाक।*
*यदि उपरोक्त ग्रह योग २-७ -११ वे भाव में होतो , ज्यादा प्रभावशाली है॥(उपरोक्त योग होने पर अंत तलाक में होता है )*
*अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में जाने -*
*१. यदि दूसरे भाव में पाप ग्रह शनि,मंगल, राहू, केतू इनमे कोई एक या दो से अधिक ग्रह शत्रु राशी में बैठे हो, अथवा इन ग्रहों की दूसरे भाव पर दृष्टी होतो, संचित धन का नाश कर देते हैं।*
*२. यदि कोई पापी ग्रह शनि, मंगल, सूर्य अष्टम में बैठ कर सप्तम दृष्टी से दूसरे भाव को देखेगे तो धन का नाश करेगी, इसमे शर्त यह है कि दूसरे भाव की राशी इनकी खुद की राशी ना हो।*
*३. यदि ५ वे भाव में स्थित शनि १० दृष्टी से दूसरे भाव को, मंगल ७ वे भाव से ८ वी दृष्टी से दूसरे भाव को देखता है तो, धन का नाश होगा।*
*४. यदि राहू या केतू ६ थे भाव में स्थित होकर ९ वी दृष्टी से भाव दूसरे भाव को देखेगे तो धन का नाश कर देंगे।*
*५. यदि दूसरे भाव में सूर्य+शनि अथवा सूर्य+राहू होतो, राज प्रकोप से धन का नाश होता है।*
*६. यदि ११ वे भाव में कोई भी ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल,बुध, गुरु, शुक्र, शनि होतो, वे जातक को धन लाभ कराते है. ११ वे भाव में स्थित ग्रह जिन वस्तुओं के कारक होते है, उन वस्तुओं के कारोबार से जातक को धन-लाभ होता है।*
*७. राहू, केतू ११ वे भाव में होतो, धन लाभ में रूकावट डालते है। आय में विलम्ब करते है। यह ग्रह अचानक रूका हुआ धन दिला देते है।*
*८. यदि १२ वे भाव में सूर्य+शनि की युति होतो , मुकदमे बाज़ी में धन का नाश होता है।*
*९. यदि दूसरे भाव का स्वामी और ११ वे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो जातक निर्धन हो जाता है।*
*१०. यदि दूसरे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो, जातक के पास धन नहीं होगा।*
*११. यदि ११ वे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो, जातक कमाता जायेगा और खर्च होता जायेगा।*
*जानिए की सरकारी नौकरी किस को मिल सकती है...*
*१. यदि १० भाव में मंगल हो, या १० भाव पर मंगल की दृष्टी हो,*
*२. यदि मंगल ८ वे भाव के अतिरिक्त कही पर भी उच्च राशी मकर (१०) का होतो।*
*३. मंगल केंद्र १, ४, ७, १०, या त्रिकोण ५, ९ में हो तो.*
*४. यदि लग्न से १० वे भाव में सूर्य (मेष) , या गुरू (४) उच्च राशी का हो तो। अथवा स्व राशी या मित्र राशी के हो।*
*५. लग्नेश (१) भाव के स्वामी की लग्न पर दृष्टी हो।*
*६. लग्नेश (१) +दशमेश (१०) की युति हो।*
*७. दशमेश (१०) केंद्र १, ४, ७, ७ , १० या त्रिकोण ५, ९ वे भाव में हो तो। उपरोक्त योग होने पर जातक को सरकारी नौकरी मिलती है। जितने ज्यादा योग होगे , उतना बड़ा पद प्राप्त होगा।*
*जानिये की घर से भागकर कौन शादी (लव मैरीज़ ) करते है ?*
*१. यदि छठे , सातवे , आठवे भाव में तीनों भावों में पाप ग्रह हो।*
*२. चतुर्थ भाव अथवा चतुर्थ भाव के स्वामी पर पृथकतावादी ग्रहों यथा सूर्य, शनि , राहू का प्रभाव होतो , ये जातक घर से भागकर शादी करते है।*
*(उदाहरण : कुम्भ लग्न (११) दसरे भाव में केतू , पंचम भाव (५) में चन्द्रमा +गुरू , ६ ठे भाव (६) में मंगल , सातवे भाव (७) में शनि , आठवे भाव (८) में राहू , ग्यारवें भाव (११) में बुध , बारहवें भाव में (१२) सूर्य+शुक्र ) . इस स्नातक लड़की ने घर से भागकर शादी की। इस कुंडली में उपरोक्त दोनों योग है )*
*कुंडली के विशेष योग -*
*क्या कहते हैं ? नीच राशी के ग्रह -*
*१. यदि सूर्य नीच राशी तुला (७) में हो तो, जातक पापी, साथियों की सहायता करने वाला , और नीच कर्म में तत्पर होता है।*
*२. चन्द्रमा नीच राशी वृश्चिक (८) तो जातक रोगी , धन का अपव्यय करने वाला तथा विद्वानों का संगी।*
*३. मंगल नीच राशी कर्क (४) में होतो, जातक की बुद्धि कुंठित होती है , इअसके सोचे हुए कार्य अधूरे रहते हैं। यह किसी का एहसान भूलने में देर नहीं करता है।*
*४. बुध नीच राशी मीन (१२)का होतो, जातक समाज द्रोही , बंधुओं के द्वारा अपमानित तथा चित्रकला आदि में प्रसिद्ध।*
*५. गुरु नीच राशी मकर (१०) का हो तो अपनी दशा में जातक को कलंकित करता है, तथा भाग्य के साथ खिलवाड़ करता रहता है।*
*६. शुक्र नीच राशी कन्या (६) का हो तो , जातक को मेहनत के बाद भी धन नहीं मिलता है. इसके कारण जातक को पश्चाताप होता रहता है।*
*७. शनि नीच राशी मेष (१) का हो तो, अपव्ययी , मद्यप , तथा पर स्त्री गामी होता है।*
*८. राहू नीच राशी का होने पर जातक मुकदमें जीतने वाला , लेकिन धन प्राप्त नहीं होता है।*
*९. केतू नीच राशी का होने पर जातक मलिन मन का , दुर्बुद्धि और कष्ट सहन करने वाला होता है।*
*(राहू , केतू की नीच राशी में विवाद रहता है, इसलिए नहीं बताये गये है )*
*कुंडली के विशेष योग -*
*१. चन्द्र+मंगल युती - इस युति से चन्द्र-मंगल योग का निर्माण होता ,है जिसके फल स्वरुप जातक अपने जीवन में धनवान हो जाता है , यह जातक धन-संचय करने में बहुत प्रवीण होता है। जीवन में विविध स्त्रीयों से उसका संपर्क रहता है। इसका व्यवहार चालाकी भरा होता है। यदि कुंडली में चन्द्र-मंगल अकारक होगें तो फल बदल जाएगा। यह योग २, ९, १०, और ११ वे भाव में यह योग विशेष शुभ फल देता है।*
*(उदाहरण : श्री अशोक कुमार फिल्म अभिनेता , मेष लग्न (१) में राहू+शनि , २रे भाव में चन्द्र+मंगल , ५ वे भाव में शुक्र , ६ ठे भाव में सूर्य+बुध , ७वे भाव में गुरू +केतू )*
*यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह उच्च राशी में है तो, आपको क्या देगा ? यह जानिये ?*
*१. यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो , यह आपको ज्ञानियों में पूज्य बनाएगा, सहधर्मियों में नायक , भाग्यवान , धनवान , सुख भोगने वाला बना देता है।*
*२. यदि चन्द्रमा उच्च राशी वृषभ (२) होगा तो , वह जातक को समाज में सम्मान दिलाता है, साथ ही वह जातक को हंसमुख , चंचल , विलासी स्वभाव बनाता है।*
*३. मंगल के उच्च राशी मकर (१०) का होने पर जातक बलिष्ठ , और शूरवीर होता है, यह कर्तव्य शीतलता नहीं दिखाता है। जातक राज्य की सेवा में विशेष सफलता पाता है।*
*४. यदि बुध उच्च राशी कन्या (६) का होतो, जातक को यह कुशल सम्पादक , प्रसिद्ध लेखक या कवि बनाता है। यह यश -वृद्धि से संतुष्ट रहता है , तथा समाज में सम्मान पाता है।*
*५. यदि गुरु उच्च राशी कर्क (४) का हो तो , जातक चतुर , विवेक शील , सोच- समझकर कार्य करने वाला , ऐश्वर्य वान होता है।*
*६. यदि शुक्र उच्च राशी मीन (१२) का हो जातक संगीतज्ञ , अभिनेता , उन्नत भाग्य वाला होता है।*
*७. यदि शनि उच्च राशि तुला (७) का हो तो जातक को विशेष धन की प्राप्ति होती है , अचानक धन मिलता है , सट्टे , शेयर , या लॉटरी से धन लाभ।*
*८.यदि राहू उच्च का होतो, स्पष्ट वादी , गूढ़ विद्या की प्राप्ति होती।*
*९. यदि केतू उच्च राशी का हो तो, राज्य में पदोन्नति पाता है. किन्तु जातक नीच, लम्पट, धोखेबाज़ दोस्तों से हानी पाने वाला , किसी टीम का नायक होता। है।यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो , यह आपको ज्ञानियों में पूज्य बनाएगा, सहधर्मियों में नायक , भाग्यवान , धनवान , सुख भोगने वाला बना देता है।*
*यदि चन्द्रमा उच्च राशी वृषभ (२) होगा तो , वह जातक को समाज में सम्मान दिलाता है, साथ ही वह जातक को हंसमुख , चंचल , विलासी स्वभाव बनाता है।*
*मंगल के उच्च राशी मकर (१०) का होने पर जातक बलिष्ठ , और शूरवीर होता है, यह कर्तव्य शीतलता नहीं दिखाता है। जातक राज्य की सेवा में विशेष सफलता पाता है।*
*यदि बुध उच्च राशी कन्या (६) का होतो, जातक को यह कुशल सम्पादक , प्रसिद्ध लेखक या कवि बनाता है। यह यश -वृद्धि से संतुष्ट रहता है , तथा समाज में सम्मान पाता है।**कुंडली में सप्तम भाव से पत्नी का भाव होता है, तथा इसका कारक शुक्र होता है, जब सप्तम भाव ,सप्तमेश तथा शुक्र शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट होतो, पत्नी सुख मिलता है और ये पाप प्रभाव अथवा अशुभ भाव में होतो पत्नी सुख में बाधा आती है। निम्न योग पत्नी सुख में बाधा डालते है।*
*१. जब लग्न, द्वितीय , चतुर्थ, सप्तम, अष्टम , द्वादश भाव में मंगल शत्रु राशी में हो.*
*२. चतुर्थ भाव का मंगल घर में क्लेश करता है।*
*३. सप्तम भाव में शनि नीच (मेष) अथवा शत्रु राशी का हो तथा उस पर मंगल की दृष्टी होतो, दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।*
*४. सप्तम भाव में बुध +शुक्र की युती ४५-५० साल की उम्र में पत्नी सुख मिलता है।*
*५. सप्तम भाव पर सूर्य, राहू का प्रभाव जातक को अपने पत्नी/पति से अलग करते है। अथवा तलाक करवा देते है।*
*६. लग्न (१) भाव में सूर्य+राहू की युती दाम्पत्य जीवन में बाधा डालते है।*
*७. लग्न में सूर्य जातक को क्रोधी बनाता है।*
*८. सप्तम भाव में सूर्य पत्नी को क्रोधी बनाता है।*
*९. सप्तम में नीच राशी का चन्द्रमा (८) वृश्चिक राशी का अथवा पाप राशी का चन्द्रमा हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टी होतो, जातक अपनी पत्नी/पति को खो बैठता है।*
*१०. यदि सप्तम भाव में शनि +चन्द्र की युती जातक को विधवा स्त्री दिलवा देते है।*
*११. यदि सप्तमेश राहू या केतू से युक्त होतो, जातक पर-स्त्री गामी होता है।*
*१२. सप्तम भाव में राहू जातक को दूसरे की स्त्री में आशक्त करता है।*
*१३. सप्तम में मकर राशी का गुरू (१०) होतो दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।*
*१. चन्द्र +राहू युति होतो – मानसिक चिंता , पति / पत्नी की मानसिक स्थिति में असंतुलन होता है।*
*२. मंगल+राहू की युति से – अड़ियल स्वभाव अथवा एक दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुँचाना।*
*३. शुक्र +राहू की युति से – जातक के पत्नी के अलावा अन्य स्त्री से सम्बन्ध के कारण अथवा माता-पिता की इच्छा के बिना विवाह कारण तलाक।*
*४. सूर्य+राहू – पति, पत्नि के पद , ओहदे अथवा आर्थिक स्थिति को लेकर मतभेद , तथा तलाक की नौबत।*
*५. शनि +राहू – एक दूसरे से अलग रहने के कारण , अशांति तथा तलाक।*
*६. बुध+राहू -दिमागी सोच में असमानता के कारण अशांति तथा तलाक।*
*७. मंगल+शुक्र+राहू -घरेलू अशांति -दुःख तथा अंत तलाक।*
*८. शुक्र+चन्द्र +राहू – प्रेम में घाटा ही घाटा। स्त्रीयों से हानि, घरेलू अशांति। पराई औरतों से सम्बन्ध अंत में तलाक।*
*यदि उपरोक्त ग्रह योग २-७ -११ वे भाव में होतो , ज्यादा प्रभावशाली है॥(उपरोक्त योग होने पर अंत तलाक में होता है )*
*अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में जाने -*
*१. यदि दूसरे भाव में पाप ग्रह शनि,मंगल, राहू, केतू इनमे कोई एक या दो से अधिक ग्रह शत्रु राशी में बैठे हो, अथवा इन ग्रहों की दूसरे भाव पर दृष्टी होतो, संचित धन का नाश कर देते हैं।*
*२. यदि कोई पापी ग्रह शनि, मंगल, सूर्य अष्टम में बैठ कर सप्तम दृष्टी से दूसरे भाव को देखेगे तो धन का नाश करेगी, इसमे शर्त यह है कि दूसरे भाव की राशी इनकी खुद की राशी ना हो।*
*३. यदि ५ वे भाव में स्थित शनि १० दृष्टी से दूसरे भाव को, मंगल ७ वे भाव से ८ वी दृष्टी से दूसरे भाव को देखता है तो, धन का नाश होगा।*
*४. यदि राहू या केतू ६ थे भाव में स्थित होकर ९ वी दृष्टी से भाव दूसरे भाव को देखेगे तो धन का नाश कर देंगे।*
*५. यदि दूसरे भाव में सूर्य+शनि अथवा सूर्य+राहू होतो, राज प्रकोप से धन का नाश होता है।*
*६. यदि ११ वे भाव में कोई भी ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल,बुध, गुरु, शुक्र, शनि होतो, वे जातक को धन लाभ कराते है. ११ वे भाव में स्थित ग्रह जिन वस्तुओं के कारक होते है, उन वस्तुओं के कारोबार से जातक को धन-लाभ होता है।*
*७. राहू, केतू ११ वे भाव में होतो, धन लाभ में रूकावट डालते है। आय में विलम्ब करते है। यह ग्रह अचानक रूका हुआ धन दिला देते है।*
*८. यदि १२ वे भाव में सूर्य+शनि की युति होतो , मुकदमे बाज़ी में धन का नाश होता है।*
*९. यदि दूसरे भाव का स्वामी और ११ वे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो जातक निर्धन हो जाता है।*
*१०. यदि दूसरे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो, जातक के पास धन नहीं होगा।*
*११. यदि ११ वे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो, जातक कमाता जायेगा और खर्च होता जायेगा।*
*जानिए की सरकारी नौकरी किस को मिल सकती है...*
*१. यदि १० भाव में मंगल हो, या १० भाव पर मंगल की दृष्टी हो,*
*२. यदि मंगल ८ वे भाव के अतिरिक्त कही पर भी उच्च राशी मकर (१०) का होतो।*
*३. मंगल केंद्र १, ४, ७, १०, या त्रिकोण ५, ९ में हो तो.*
*४. यदि लग्न से १० वे भाव में सूर्य (मेष) , या गुरू (४) उच्च राशी का हो तो। अथवा स्व राशी या मित्र राशी के हो।*
*५. लग्नेश (१) भाव के स्वामी की लग्न पर दृष्टी हो।*
*६. लग्नेश (१) +दशमेश (१०) की युति हो।*
*७. दशमेश (१०) केंद्र १, ४, ७, ७ , १० या त्रिकोण ५, ९ वे भाव में हो तो। उपरोक्त योग होने पर जातक को सरकारी नौकरी मिलती है। जितने ज्यादा योग होगे , उतना बड़ा पद प्राप्त होगा।*
*जानिये की घर से भागकर कौन शादी (लव मैरीज़ ) करते है ?*
*१. यदि छठे , सातवे , आठवे भाव में तीनों भावों में पाप ग्रह हो।*
*२. चतुर्थ भाव अथवा चतुर्थ भाव के स्वामी पर पृथकतावादी ग्रहों यथा सूर्य, शनि , राहू का प्रभाव होतो , ये जातक घर से भागकर शादी करते है।*
*(उदाहरण : कुम्भ लग्न (११) दसरे भाव में केतू , पंचम भाव (५) में चन्द्रमा +गुरू , ६ ठे भाव (६) में मंगल , सातवे भाव (७) में शनि , आठवे भाव (८) में राहू , ग्यारवें भाव (११) में बुध , बारहवें भाव में (१२) सूर्य+शुक्र ) . इस स्नातक लड़की ने घर से भागकर शादी की। इस कुंडली में उपरोक्त दोनों योग है )*
*कुंडली के विशेष योग -*
*क्या कहते हैं ? नीच राशी के ग्रह -*
*१. यदि सूर्य नीच राशी तुला (७) में हो तो, जातक पापी, साथियों की सहायता करने वाला , और नीच कर्म में तत्पर होता है।*
*२. चन्द्रमा नीच राशी वृश्चिक (८) तो जातक रोगी , धन का अपव्यय करने वाला तथा विद्वानों का संगी।*
*३. मंगल नीच राशी कर्क (४) में होतो, जातक की बुद्धि कुंठित होती है , इअसके सोचे हुए कार्य अधूरे रहते हैं। यह किसी का एहसान भूलने में देर नहीं करता है।*
*४. बुध नीच राशी मीन (१२)का होतो, जातक समाज द्रोही , बंधुओं के द्वारा अपमानित तथा चित्रकला आदि में प्रसिद्ध।*
*५. गुरु नीच राशी मकर (१०) का हो तो अपनी दशा में जातक को कलंकित करता है, तथा भाग्य के साथ खिलवाड़ करता रहता है।*
*६. शुक्र नीच राशी कन्या (६) का हो तो , जातक को मेहनत के बाद भी धन नहीं मिलता है. इसके कारण जातक को पश्चाताप होता रहता है।*
*७. शनि नीच राशी मेष (१) का हो तो, अपव्ययी , मद्यप , तथा पर स्त्री गामी होता है।*
*८. राहू नीच राशी का होने पर जातक मुकदमें जीतने वाला , लेकिन धन प्राप्त नहीं होता है।*
*९. केतू नीच राशी का होने पर जातक मलिन मन का , दुर्बुद्धि और कष्ट सहन करने वाला होता है।*
*(राहू , केतू की नीच राशी में विवाद रहता है, इसलिए नहीं बताये गये है )*
*कुंडली के विशेष योग -*
*१. चन्द्र+मंगल युती - इस युति से चन्द्र-मंगल योग का निर्माण होता ,है जिसके फल स्वरुप जातक अपने जीवन में धनवान हो जाता है , यह जातक धन-संचय करने में बहुत प्रवीण होता है। जीवन में विविध स्त्रीयों से उसका संपर्क रहता है। इसका व्यवहार चालाकी भरा होता है। यदि कुंडली में चन्द्र-मंगल अकारक होगें तो फल बदल जाएगा। यह योग २, ९, १०, और ११ वे भाव में यह योग विशेष शुभ फल देता है।*
*(उदाहरण : श्री अशोक कुमार फिल्म अभिनेता , मेष लग्न (१) में राहू+शनि , २रे भाव में चन्द्र+मंगल , ५ वे भाव में शुक्र , ६ ठे भाव में सूर्य+बुध , ७वे भाव में गुरू +केतू )*
*यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह उच्च राशी में है तो, आपको क्या देगा ? यह जानिये ?*
*१. यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो , यह आपको ज्ञानियों में पूज्य बनाएगा, सहधर्मियों में नायक , भाग्यवान , धनवान , सुख भोगने वाला बना देता है।*
*२. यदि चन्द्रमा उच्च राशी वृषभ (२) होगा तो , वह जातक को समाज में सम्मान दिलाता है, साथ ही वह जातक को हंसमुख , चंचल , विलासी स्वभाव बनाता है।*
*३. मंगल के उच्च राशी मकर (१०) का होने पर जातक बलिष्ठ , और शूरवीर होता है, यह कर्तव्य शीतलता नहीं दिखाता है। जातक राज्य की सेवा में विशेष सफलता पाता है।*
*४. यदि बुध उच्च राशी कन्या (६) का होतो, जातक को यह कुशल सम्पादक , प्रसिद्ध लेखक या कवि बनाता है। यह यश -वृद्धि से संतुष्ट रहता है , तथा समाज में सम्मान पाता है।*
*५. यदि गुरु उच्च राशी कर्क (४) का हो तो , जातक चतुर , विवेक शील , सोच- समझकर कार्य करने वाला , ऐश्वर्य वान होता है।*
*६. यदि शुक्र उच्च राशी मीन (१२) का हो जातक संगीतज्ञ , अभिनेता , उन्नत भाग्य वाला होता है।*
*७. यदि शनि उच्च राशि तुला (७) का हो तो जातक को विशेष धन की प्राप्ति होती है , अचानक धन मिलता है , सट्टे , शेयर , या लॉटरी से धन लाभ।*
*८.यदि राहू उच्च का होतो, स्पष्ट वादी , गूढ़ विद्या की प्राप्ति होती।*
*९. यदि केतू उच्च राशी का हो तो, राज्य में पदोन्नति पाता है. किन्तु जातक नीच, लम्पट, धोखेबाज़ दोस्तों से हानी पाने वाला , किसी टीम का नायक होता। है।यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो , यह आपको ज्ञानियों में पूज्य बनाएगा, सहधर्मियों में नायक , भाग्यवान , धनवान , सुख भोगने वाला बना देता है।*
*यदि चन्द्रमा उच्च राशी वृषभ (२) होगा तो , वह जातक को समाज में सम्मान दिलाता है, साथ ही वह जातक को हंसमुख , चंचल , विलासी स्वभाव बनाता है।*
*मंगल के उच्च राशी मकर (१०) का होने पर जातक बलिष्ठ , और शूरवीर होता है, यह कर्तव्य शीतलता नहीं दिखाता है। जातक राज्य की सेवा में विशेष सफलता पाता है।*
*यदि बुध उच्च राशी कन्या (६) का होतो, जातक को यह कुशल सम्पादक , प्रसिद्ध लेखक या कवि बनाता है। यह यश -वृद्धि से संतुष्ट रहता है , तथा समाज में सम्मान पाता है।**कुंडली में सप्तम भाव से पत्नी का भाव होता है, तथा इसका कारक शुक्र होता है, जब सप्तम भाव ,सप्तमेश तथा शुक्र शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट होतो, पत्नी सुख मिलता है और ये पाप प्रभाव अथवा अशुभ भाव में होतो पत्नी सुख में बाधा आती है। निम्न योग पत्नी सुख में बाधा डालते है।*
*१. जब लग्न, द्वितीय , चतुर्थ, सप्तम, अष्टम , द्वादश भाव में मंगल शत्रु राशी में हो.*
*२. चतुर्थ भाव का मंगल घर में क्लेश करता है।*
*३. सप्तम भाव में शनि नीच (मेष) अथवा शत्रु राशी का हो तथा उस पर मंगल की दृष्टी होतो, दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।*
*४. सप्तम भाव में बुध +शुक्र की युती ४५-५० साल की उम्र में पत्नी सुख मिलता है।*
*५. सप्तम भाव पर सूर्य, राहू का प्रभाव जातक को अपने पत्नी/पति से अलग करते है। अथवा तलाक करवा देते है।*
*६. लग्न (१) भाव में सूर्य+राहू की युती दाम्पत्य जीवन में बाधा डालते है।*
*७. लग्न में सूर्य जातक को क्रोधी बनाता है।*
*८. सप्तम भाव में सूर्य पत्नी को क्रोधी बनाता है।*
*९. सप्तम में नीच राशी का चन्द्रमा (८) वृश्चिक राशी का अथवा पाप राशी का चन्द्रमा हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टी होतो, जातक अपनी पत्नी/पति को खो बैठता है।*
*१०. यदि सप्तम भाव में शनि +चन्द्र की युती जातक को विधवा स्त्री दिलवा देते है।*
*११. यदि सप्तमेश राहू या केतू से युक्त होतो, जातक पर-स्त्री गामी होता है।*
*१२. सप्तम भाव में राहू जातक को दूसरे की स्त्री में आशक्त करता है।*
*१३. सप्तम में मकर राशी का गुरू (१०) होतो दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।*
*१. चन्द्र +राहू युति होतो – मानसिक चिंता , पति / पत्नी की मानसिक स्थिति में असंतुलन होता है।*
*२. मंगल+राहू की युति से – अड़ियल स्वभाव अथवा एक दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुँचाना।*
*३. शुक्र +राहू की युति से – जातक के पत्नी के अलावा अन्य स्त्री से सम्बन्ध के कारण अथवा माता-पिता की इच्छा के बिना विवाह कारण तलाक।*
*४. सूर्य+राहू – पति, पत्नि के पद , ओहदे अथवा आर्थिक स्थिति को लेकर मतभेद , तथा तलाक की नौबत।*
*५. शनि +राहू – एक दूसरे से अलग रहने के कारण , अशांति तथा तलाक।*
*६. बुध+राहू -दिमागी सोच में असमानता के कारण अशांति तथा तलाक।*
*७. मंगल+शुक्र+राहू -घरेलू अशांति -दुःख तथा अंत तलाक।*
*८. शुक्र+चन्द्र +राहू – प्रेम में घाटा ही घाटा। स्त्रीयों से हानि, घरेलू अशांति। पराई औरतों से सम्बन्ध अंत में तलाक।*
*यदि उपरोक्त ग्रह योग २-७ -११ वे भाव में होतो , ज्यादा प्रभावशाली है॥(उपरोक्त योग होने पर अंत तलाक में होता है )*
*अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में जाने -*
*१. यदि दूसरे भाव में पाप ग्रह शनि,मंगल, राहू, केतू इनमे कोई एक या दो से अधिक ग्रह शत्रु राशी में बैठे हो, अथवा इन ग्रहों की दूसरे भाव पर दृष्टी होतो, संचित धन का नाश कर देते हैं।*
*२. यदि कोई पापी ग्रह शनि, मंगल, सूर्य अष्टम में बैठ कर सप्तम दृष्टी से दूसरे भाव को देखेगे तो धन का नाश करेगी, इसमे शर्त यह है कि दूसरे भाव की राशी इनकी खुद की राशी ना हो।*
*३. यदि ५ वे भाव में स्थित शनि १० दृष्टी से दूसरे भाव को, मंगल ७ वे भाव से ८ वी दृष्टी से दूसरे भाव को देखता है तो, धन का नाश होगा।*
*४. यदि राहू या केतू ६ थे भाव में स्थित होकर ९ वी दृष्टी से भाव दूसरे भाव को देखेगे तो धन का नाश कर देंगे।*
*५. यदि दूसरे भाव में सूर्य+शनि अथवा सूर्य+राहू होतो, राज प्रकोप से धन का नाश होता है।*
*६. यदि ११ वे भाव में कोई भी ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल,बुध, गुरु, शुक्र, शनि होतो, वे जातक को धन लाभ कराते है. ११ वे भाव में स्थित ग्रह जिन वस्तुओं के कारक होते है, उन वस्तुओं के कारोबार से जातक को धन-लाभ होता है।*
*७. राहू, केतू ११ वे भाव में होतो, धन लाभ में रूकावट डालते है। आय में विलम्ब करते है। यह ग्रह अचानक रूका हुआ धन दिला देते है।*
*८. यदि १२ वे भाव में सूर्य+शनि की युति होतो , मुकदमे बाज़ी में धन का नाश होता है।*
*९. यदि दूसरे भाव का स्वामी और ११ वे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो जातक निर्धन हो जाता है।*
*१०. यदि दूसरे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो, जातक के पास धन नहीं होगा।*
*११. यदि ११ वे भाव का स्वामी १२ वे भाव में होतो, जातक कमाता जायेगा और खर्च होता जायेगा।*
*जानिए की सरकारी नौकरी किस को मिल सकती है...*
*१. यदि १० भाव में मंगल हो, या १० भाव पर मंगल की दृष्टी हो,*
*२. यदि मंगल ८ वे भाव के अतिरिक्त कही पर भी उच्च राशी मकर (१०) का होतो।*
*३. मंगल केंद्र १, ४, ७, १०, या त्रिकोण ५, ९ में हो तो.*
*४. यदि लग्न से १० वे भाव में सूर्य (मेष) , या गुरू (४) उच्च राशी का हो तो। अथवा स्व राशी या मित्र राशी के हो।*
*५. लग्नेश (१) भाव के स्वामी की लग्न पर दृष्टी हो।*
*६. लग्नेश (१) +दशमेश (१०) की युति हो।*
*७. दशमेश (१०) केंद्र १, ४, ७, ७ , १० या त्रिकोण ५, ९ वे भाव में हो तो। उपरोक्त योग होने पर जातक को सरकारी नौकरी मिलती है। जितने ज्यादा योग होगे , उतना बड़ा पद प्राप्त होगा।*
*जानिये की घर से भागकर कौन शादी (लव मैरीज़ ) करते है ?*
*१. यदि छठे , सातवे , आठवे भाव में तीनों भावों में पाप ग्रह हो।*
*२. चतुर्थ भाव अथवा चतुर्थ भाव के स्वामी पर पृथकतावादी ग्रहों यथा सूर्य, शनि , राहू का प्रभाव होतो , ये जातक घर से भागकर शादी करते है।*
*(उदाहरण : कुम्भ लग्न (११) दसरे भाव में केतू , पंचम भाव (५) में चन्द्रमा +गुरू , ६ ठे भाव (६) में मंगल , सातवे भाव (७) में शनि , आठवे भाव (८) में राहू , ग्यारवें भाव (११) में बुध , बारहवें भाव में (१२) सूर्य+शुक्र ) . इस स्नातक लड़की ने घर से भागकर शादी की। इस कुंडली में उपरोक्त दोनों योग है )*
*कुंडली के विशेष योग -*
*क्या कहते हैं ? नीच राशी के ग्रह -*
*१. यदि सूर्य नीच राशी तुला (७) में हो तो, जातक पापी, साथियों की सहायता करने वाला , और नीच कर्म में तत्पर होता है।*
*२. चन्द्रमा नीच राशी वृश्चिक (८) तो जातक रोगी , धन का अपव्यय करने वाला तथा विद्वानों का संगी।*
*३. मंगल नीच राशी कर्क (४) में होतो, जातक की बुद्धि कुंठित होती है , इअसके सोचे हुए कार्य अधूरे रहते हैं। यह किसी का एहसान भूलने में देर नहीं करता है।*
*४. बुध नीच राशी मीन (१२)का होतो, जातक समाज द्रोही , बंधुओं के द्वारा अपमानित तथा चित्रकला आदि में प्रसिद्ध।*
*५. गुरु नीच राशी मकर (१०) का हो तो अपनी दशा में जातक को कलंकित करता है, तथा भाग्य के साथ खिलवाड़ करता रहता है।*
*६. शुक्र नीच राशी कन्या (६) का हो तो , जातक को मेहनत के बाद भी धन नहीं मिलता है. इसके कारण जातक को पश्चाताप होता रहता है।*
*७. शनि नीच राशी मेष (१) का हो तो, अपव्ययी , मद्यप , तथा पर स्त्री गामी होता है।*
*८. राहू नीच राशी का होने पर जातक मुकदमें जीतने वाला , लेकिन धन प्राप्त नहीं होता है।*
*९. केतू नीच राशी का होने पर जातक मलिन मन का , दुर्बुद्धि और कष्ट सहन करने वाला होता है।*
*(राहू , केतू की नीच राशी में विवाद रहता है, इसलिए नहीं बताये गये है )*
*कुंडली के विशेष योग -*
*१. चन्द्र+मंगल युती - इस युति से चन्द्र-मंगल योग का निर्माण होता ,है जिसके फल स्वरुप जातक अपने जीवन में धनवान हो जाता है , यह जातक धन-संचय करने में बहुत प्रवीण होता है। जीवन में विविध स्त्रीयों से उसका संपर्क रहता है। इसका व्यवहार चालाकी भरा होता है। यदि कुंडली में चन्द्र-मंगल अकारक होगें तो फल बदल जाएगा। यह योग २, ९, १०, और ११ वे भाव में यह योग विशेष शुभ फल देता है।*
*(उदाहरण : श्री अशोक कुमार फिल्म अभिनेता , मेष लग्न (१) में राहू+शनि , २रे भाव में चन्द्र+मंगल , ५ वे भाव में शुक्र , ६ ठे भाव में सूर्य+बुध , ७वे भाव में गुरू +केतू )*
*यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह उच्च राशी में है तो, आपको क्या देगा ? यह जानिये ?*
*१. यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो , यह आपको ज्ञानियों में पूज्य बनाएगा, सहधर्मियों में नायक , भाग्यवान , धनवान , सुख भोगने वाला बना देता है।*
*२. यदि चन्द्रमा उच्च राशी वृषभ (२) होगा तो , वह जातक को समाज में सम्मान दिलाता है, साथ ही वह जातक को हंसमुख , चंचल , विलासी स्वभाव बनाता है।*
*३. मंगल के उच्च राशी मकर (१०) का होने पर जातक बलिष्ठ , और शूरवीर होता है, यह कर्तव्य शीतलता नहीं दिखाता है। जातक राज्य की सेवा में विशेष सफलता पाता है।*
*४. यदि बुध उच्च राशी कन्या (६) का होतो, जातक को यह कुशल सम्पादक , प्रसिद्ध लेखक या कवि बनाता है। यह यश -वृद्धि से संतुष्ट रहता है , तथा समाज में सम्मान पाता है।*
*५. यदि गुरु उच्च राशी कर्क (४) का हो तो , जातक चतुर , विवेक शील , सोच- समझकर कार्य करने वाला , ऐश्वर्य वान होता है।*
*६. यदि शुक्र उच्च राशी मीन (१२) का हो जातक संगीतज्ञ , अभिनेता , उन्नत भाग्य वाला होता है।*
*७. यदि शनि उच्च राशि तुला (७) का हो तो जातक को विशेष धन की प्राप्ति होती है , अचानक धन मिलता है , सट्टे , शेयर , या लॉटरी से धन लाभ।*
*८.यदि राहू उच्च का होतो, स्पष्ट वादी , गूढ़ विद्या की प्राप्ति होती।*
*९. यदि केतू उच्च राशी का हो तो, राज्य में पदोन्नति पाता है. किन्तु जातक नीच, लम्पट, धोखेबाज़ दोस्तों से हानी पाने वाला , किसी टीम का नायक होता। है।यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो , यह आपको ज्ञानियों में पूज्य बनाएगा, सहधर्मियों में नायक , भाग्यवान , धनवान , सुख भोगने वाला बना देता है।*
*यदि चन्द्रमा उच्च राशी वृषभ (२) होगा तो , वह जातक को समाज में सम्मान दिलाता है, साथ ही वह जातक को हंसमुख , चंचल , विलासी स्वभाव बनाता है।*
*मंगल के उच्च राशी मकर (१०) का होने पर जातक बलिष्ठ , और शूरवीर होता है, यह कर्तव्य शीतलता नहीं दिखाता है। जातक राज्य की सेवा में विशेष सफलता पाता है।*
*यदि बुध उच्च राशी कन्या (६) का होतो, जातक को यह कुशल सम्पादक , प्रसिद्ध लेखक या कवि बनाता है। यह यश -वृद्धि से संतुष्ट रहता है , तथा समाज में सम्मान पाता है।*

Show More Reactio

LikeShow More Reacti
Remove

LikeShow More React
Remove