Saturday, December 2, 2017

লগ্ন ভাব



प्रथम भाव को लग्न, आत्मा, शरीर, होरा, उदय, आदि, के नाम से भी जाना जाता है| इस भाव से व्यक्ति के शरीर, रूप, रंग, आकृति, स्वभाव, ज्ञान, बल, सुख, यश, गौरव, आयु तथा मानसिक स्तर का विचार किया जाता है| लग्न को भावों में विशिष्ट श्रेणी प्रदान की गई है| लग्न एक केंद्र भी है, तो त्रिकोण भी| लग्न भाव का स्वामी(लग्नेश), चाहे वह नैसर्गिक पापी ग्रह हो या शुभ ग्रह, हमेशा शुभ ही माना जाता है| अतः लग्न व लग्नेश को फलित ज्योतिष में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है| इस भाव का कारक ग्रह सूर्य है, क्योंकि सूर्य ही जातक का जनक व उसकी आत्मा का अधिष्ठाता है|
प्रथम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-
शरीर- शरीर का मोटा या दुबला होना जलीय एवं शुष्क ग्रहों और राशियों पर निर्भर करता है| अर्थात जब जलीय ग्रहों का संबंध अन्य ग्रहों की अपेक्षा प्रथम भाव पर अधिक पड़ता है तब जातक का शरीर मोटा होता है| परंतु अगर शुष्क ग्रहों और राशियों का संबंध लग्न पर अधिक पड़ता है तब जातक का शरीर दुबला होता है|
कद- लग्न पर जब शनि, राहु, बुध, गुरु आदि दीर्घ ग्रह एवं राशियों का प्रभाव पड़ता है तब जातक का शरीर लंबा होता है| परंतु जब मंगल, शुक्र आदि छोटे कद वाले ग्रह एवं राशियों का प्रभाव प्रथम भाव पर पड़ता है, तब व्यक्ति का कद छोटा होता है|
बालारिष्ट- प्रथम भाव व्यक्ति की शैशव अवस्था(बाल अवस्था) का प्रतीक है| अतः यदि लग्न के साथ-साथ लग्नेश व चन्द्र पर पाप व क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य को बाल्य अवस्था में शारीरिक कष्ट होने की संभावना होती है| अगर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो बालारिष्ट से बचाव होता है|
स्वभाव- मनुष्य के स्वभाव का विचार लग्न, लग्नेश, चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा चन्द्र से किया जाता है| किसी भी मनुष्य के स्वभाव का आकंलन करने में लग्न का बहुत महत्व होता है| इसका कारण यह है कि चतुर्थ भाव व्यक्ति के मन तथा हृदय से संबंधित है, ह्रदय तथा मन का प्रभाव मनुष्य के स्वभाव पर पूर्ण रूप से पड़ता है| चंद्रमा मन का प्रतीक है, मन से स्वभाव जुड़ा हुआ होता है| लग्न मनुष्य का सर्वस्व है, यह उसके सिर तथा विचार शक्ति को दर्शाता है| इसलिए जब चतुर्थ भाव, चतुर्थेश, चन्द्र, लग्न व लग्नेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव होता है तो व्यक्ति अच्छे स्वभाव वाला, सात्विक, दयालु तथा मिलनसार होता है| इसके विपरीत जब इन घटकों पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होता है तब व्यक्ति क्रूर तथा दुष्ट स्वभाव का होता है|
जन्मकालीन स्थिति- लग्न तथा लग्नेश पर जैसे ग्रहों का प्रभाव होता है मनुष्य को उसी प्रकार की पारिवारिक स्थिति, कुल, सुख-दुःख आदि की प्राप्ति होती है| यदि लग्न, लग्नेश, चन्द्र, सूर्य तथा इनके अधिपतियों पर गुरु और शुक्र जैसे ब्राह्मण ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य का जन्म ब्राह्मण कुल में होता है| यदि इन घटकों पर सूर्य तथा मंगल जैसे क्षत्रिय ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य का जन्म क्षत्रिय कुल में होता है| यदि अधिकांश पर बुध तथा चन्द्र जैसे वैश्य ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य का जन्म वैश्य कुल में होता है| यदि अधिकांश पर शनि का प्रभाव हो तो शुद्र कुल में जन्म होता है| यदि अधिकांश घटकों पर राहु-केतु का प्रभाव हो तो मनुष्य का जन्म गैर हिन्दू जातियों में होने की संभावना होती है|
आयु- प्रथम भाव का मनुष्य की आयु से भी घनिष्ठ संबंध है| जब लग्न, लग्नेश के साथ-साथ चन्द्र, सूर्य, शनि, तृतीय तथा अष्टम भाव व इनके स्वामी बली हों तो मनुष्य की आयु में वृद्धि होती है और उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है| इसके विपरीत यदि इन पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो अथवा यह घटक कमजोर हों तो व्यक्ति की अल्पायु होती है|
आजीविका- इसका विचार दशम भाव के अतिरिक्त लग्न से भी किया जाता है| कारण यह है कि लग्न मनुष्य का सर्वस्व है, वह धन है और धन कमाने वाला भी है| इसलिए सुदर्शन पद्दति के अनुसार लग्न, लग्नेश, चन्द्र, सूर्य और इनके अधिपति ग्रहों पर जिन-जिन ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा हो तो मनुष्य की आजीविका उसी ग्रह से संबंधित होती है|
लग्नाधियोग- यदि प्रथम भाव के अतिरिक्त द्वितीय तथा द्वादश भाव पर भी शुभ ग्रहों का युति अथवा दृष्टि द्वारा प्रभाव हो तो लग्नाधियोग का निर्माण होता है| क्योंकि इस अवस्था में शुभ ग्रहों का प्रभाव लग्न और उससे द्वितीय तथा द्वादश भाव पर भी पड़ता है| अतः लग्न बली हो जाता है और व्यक्ति को जीवन में धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है|
मान-सम्मान- यदि लग्न, लग्नेश, चन्द्र, सूर्य, दशम भाव तथा इनके अधिपति बली अवस्था में हों तो मनुष्य को जीवन में बहुत मान-सम्मान की प्राप्ति होती है| क्योंकि प्रथम भाव मनुष्य के मान-सम्मान, गौरव, यश तथा कीर्ति का प्रतीक है|
राज्य से अधिकार प्राप्ति- यदि लग्न लग्नेश, चन्द्र, सूर्य, दशम भाव तथा इनके अधिपतियों पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य अत्यंत बलवान, सत्ताधारी, उच्च अधिकारी, तथा राज्य कृपा प्राप्त व्यक्ति होता है| क्योंकि लग्न, लग्नेश का बली होना मनुष्य को सम्मान, सता, शक्ति तथा राज्य कृपा प्रदान करता है





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कुंडली से जाने राजनीतिज्ञ बनने का योग *
*‘‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’’ अर्थात देश काल व परिस्थितियों से जन्म लेते हैं- जनप्रिय राजनीतिज्ञ राजनेता। यही कारण हैं राजनीतिज्ञ बनने के। प्रजातांत्रिक समाज में लोगों की आम समस्याओं एवं उनके समाधान तथा जनहित के विकास कार्यों को शासन से आर्थिक पैकेज दिलाकर अधिकारियों के माध्यम से हल कराने का उत्तरदायित्व चयनित राजनेता का होता है। राजनेता कुछ क्षेत्रों तथा जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। जनता की भावनाओं के अनुरूप क्षेत्र में विकास के कार्यों के साथ-साथ उनमें एकता, भाईचारा, सौहार्द का वातावरण भी निर्मित करते हैं।*
*राजनेता जनता के हृदय में अपना स्थान बनाते हैं तथा उनके हित में विकास कार्य करते हुए शासन में विभिन्न राजपद प्राप्त करते हैं। इसी के कारण आज राजनेता बनना न केवल गौरव व प्रतिष्ठा की बात हो गई है, वरन् इन्हें सम्मानित दृष्टि से भी देखा जा रहा है। कुल मिलाकर आज वैभवशाली, ऐश्वर्य युक्त, शासन में राजपदों से सुशोभित, शासन में प्रतिष्ठित, जिम्मेदारी और जनता के बीच में, जनता केे लोगों द्वारा, हमेशा उच्च सम्मान से जगह-जगह सम्मानित होने के कारण ही राजनेताओं का कद, अब जनता का प्रतिनिधित्व करने वाला न रह जाकर एक प्रतिष्ठापूर्ण व्यवसाय होता जा रहा है। ज्योतिष के परिदृश्य में यदि देखा जाय तो निश्चित ही हर व्यक्ति के कुंडली में न तो ऐसे ग्रह योग होते हैं, जो राजनेता बनकर प्रतिष्ठा दें। यह ग्रह योग तो बिरले ही लोगें की जन्म कुंडलियों में पाये जाते हैं। इसी का विश्लेषण यहां करने का प्रयास किया जा रहा है कि आखिर वे कौन से ग्रह योग, ग्रह भाव स्थित ग्रह, कारक ग्रह, ग्रह दृष्टियां, दशाएं, ग्रह गोचर तथा नक्षत्र होते हैं,जिनके कारण जातक राजनेता बनता है। यदि दशम भाव में शनि हो अथवा दशमेश से संबंध करे और दशम भाव में मंगल भी हो, तो जातक दलित वर्ग की राजनीति कर राजनेता बनता है।*
*राज्य कारक सूर्य यदि दशम भाव में उच्च या स्वराशि का हो तथा राजनीति कारक राहु षष्ठम, दशम या एकादश भाव में हो तथा वाणी भाव द्वितीय के स्वामी का दशमेश से किसी भी रूप में संबंध हो रहा हो, तो जातक अच्छा वक्ता एवं शासन में उच्च पदासीन राजनेता बन सकता है।*
*कर्क लग्न की कुंडली में दशमेश मंगल द्वितीय भाव में, लग्न में शनि, षष्ठम भाव में राहु लाभेश शुक्र के साथ हो तथा लग्नेश की लग्न पर दृष्टि के साथ हो सूर्य-बुध पंचम या दशम भाव में हों तथा गुरु नवम या एकादश में हो, तो जातक उच्च राजनीतिज्ञ, प्रभावशील वक्ता, शत्रुओं को परास्त करने वाले राजनेता के रूप में यशस्वी होकर अनेक राजकीय पदों को सुशोभित करता है।*
*नेतृत्व कारक सिंह राशि की लग्न में यदि सूर्य, चन्द्र, बुध, गुरु हो, धन भाव में कन्या राशिगत मंगल, लाभ भाव में मिथुन का शनि एवं व्यय भाव में राहु व षष्ठम भाव में केतु हो, तो ऐसे जातक को विरासत में राजनीति मिलती है, जिसके कारण जातक आजीवन शासन में विभिन्न पदों को प्राप्त कर जनता में लोकप्रिय व वैभवशाली व्यक्तित्व का राजनेता होता है।*
*वृश्चिक लग्न की कुंडली में यदि लग्नेश मंगल पराक्रम भाव में उचस्थ गुरु से दृष्ट हो, दशमेश दशम में हो या दशम भाव को देखे, शनि एवं राहु की युति बुध की राशि कन्या में हो, साथ ही लाभेश लाभ भाव को देखे और भाग्येश चंद्रमा वाणी भाव द्वितीय में केतु के साथ विराजमान हो, तो जातक प्रभावशील व्यक्तित्व का जनप्रिय नेता बन जनहित के कार्यों को सम्पन्न कराने हेतु शासन में विभिन्न पदों पर आसीन होकर एक सफल राजनेता होता है।*
*वृश्चिक लग्न की कुंडली में लग्नेश यदि व्यय भाव में गुरु से दृष्ट हो, शनि लाभ भाव में होकर लग्न को देखे, राहु-चंद्र जनता के भाव चतुर्थ में हो, स्वराशि का शुक्र सप्तम में लग्नेश से दृष्ट हो तथा राज्य कारक सूर्य लाभेश के साथ युति कर शुभ स्थान में हो और साथ ही गुरु की दशम व वाणी भाव पर दृष्टि हो, तो जातक शासकीय नीतियों की आलोचना कर प्रखर एवं तेज-तर्रार नेता के रूप में जनता की आवाज हर समय बुलंद करने हेतु प्रयासरत रहता है।*
*कन्या लग्न हो और लग्नेश स्वयं द्वितीय भाव में राज्य कारक सूर्य के साथ हो, राहु भाग्य भाव में भाग्येश शुक्र, गुरु, केतु से दृष्ट हो, लाभ भाव में पंचमेश शनि, लाभेश चंद्रमा, पराक्रमेश मंगल हो और गुरु की इन पर दृष्टि पड़ रही हो, तो ऐसा जातक शासन में पद प्राप्त कर नाम और धन कमाता है, साथ ही उच्च राहु एवं बुध के कारण राजनीति में एक सफल राजनेता के साथ-साथ कुशल कूटनीतिज्ञ बन उच्च राजकीय पदों पर नाम व धन कमाता है।*
*यदि वृश्चिक लग्न में लग्नेश मंगल, भाग्येश चंद्र के साथ होकर चंद्र-मंगल योग बना रहा हो, राजनीति कारक राहु उच्च का होकर अष्टम भाव में हो, लाभेश बुध कन्या का लाभ भाव में, गुरु वक्री होकर पंचम में स्वगृही हो, जनता का कारक शनि पराक्रम भाव में स्वगृही के साथ-साथ वक्री हो एवं दशमेश सूर्य सप्तमेश शुक्र के साथ युति में हो, तो जातक प्रबल मंगल के कारण मूल रूप सेे खिलाड़ी होते हुए भी अपनी ओजस्वी वाणी के कारण लोकप्रियता प्राप्त राजनेता बनने में सक्षम होता है।*
*कुंभ लग्न की कुंडली में यदि जनता कारक शनि मित्र राशि का पंचम में हो, जनता के चतुर्थ भाव में उच्च के राहु के साथ स्वगृही शुक्र युति कर रहा हो, साथ ही दशमेश मंगल षष्ठम भाव में नीचगत हो एवं वाणी भाव का स्वामी गुरु द्वितीय भाव में स्थित बुध-चंद्र को दृष्टि द्वारा प्रभावित करने के साथ-साथ राज्य कारक सूर्य पराक्रम भाव में उच्च राशि मेष का हो, तो ऐसा जातक किसी उच्च प्रशासनिक सेवा में रहकर उच्च पद को प्राप्त करता है। वृश्चिक लग्न की कुंडली में लग्नेश मंगल दशमेश सूर्य के साथ हो, राहु चतुर्थ में होकर सप्तमेश शुक्र को दशम भाव में देखे तथा गुरु पंचम भाव में स्वगृही होकर चतुर्थेश शनि व भाग्येश चंद्र की युति को लाभ भाव में पूर्ण दृष्टि दे एवं लाभेश बुध, भाग्य भाव में हो तो जातक दृढ़ इच्छाशक्ति का अतिमहत्वाकांक्षी, कूटनीतिज्ञ जनता में यश-नाम अर्जित करने वाला राजनेता होकर किसी पार्टी का नेतृत्व करने में सक्षम राजनीतिज्ञ हो सकता है।*
*कर्क लग्न की कुंडली में यदि भाग्येश गुरु उच्च का लग्न में, लग्नेश चंद्र दशम में, लाभेश एवं चतुर्थेश शुक्र जनता के भाव चतुर्थ में, जनता कारक शनि वाणी भाव में रोग कारक मंगल पराक्रम भाव में और गुरु की दृष्टि, पंचम भाव में बुध, सूर्य, राहु हो, तो ऐसा जताक अध्ययनशील, गंभीर प्रवर्ती का, प्रभावशील, साहसी, बुद्धिमान, कूटनीतिज्ञ राजनेता होकर, उच्च राजकीय पद प्राप्त करता है।*
*कर्क लग्न की कुंडली में ही यदि भाग्येश गुरु उच्च का लग्न में हो, कर्मेश मंगल मित्र राशि का वाणी भाव में हो, लग्नेश चंद्रमा जनता के भाव चतुर्थ में, नवमस्थ राहु से दृष्ट हो, साथ ही जनता के घर का स्वामी शुक्र स्वगृही लाभ भाव में हो एवं सूर्य, बुध की युति शनि की दृष्टि पर हो, तो ऐसे ग्रह योगों वाला जातक एक गंभीर सोच वाला तार्किक वक्ता, जन मानस का हितैषी, नई सोच के कार्य करने वाला, शांत व्यक्तित्व का सफल राजनीतिक राजनेता होकर अति उच्च राजकीय पद की प्राप्ति करता है।*
*यदि कन्या लग्न हो और लग्नेश बुध भाग्येश शुक्र के साथ लाभ भाव में लाभेश चंद्र व चतुर्थेश गुरु की युति से दृष्ट हो, जनता कारक शनि राज्य कारक सूर्य के साथ दशम में हो तथा पराक्रमेश मंगल के साथ केतु होकर, षष्ठम भाव में राहु हो, तो जातक सर्वहारा वर्ग में समान विचार धारा का कम्युनिस्ट विचारों से परिपूर्ण दीर्घकाल तक राज्यपद प्राप्त कर लोकप्रियता प्राप्त करने वाला राजनेता होता है।*
*कर्क लग्न की कुंडली में यदि लग्नेश चंद्रमा भाग्येश गुरु के साथ भाग्य भाव में गजकेसरी योग बना रहा हो, दशमेश मंगल राहु से दृष्ट होकर अष्टम में हो, जनता कारक शनि राहु और केतु से संबंध कर दशम भाव में हो, लाभेश व जनता के चतुर्थ भाव का स्वामी शुक्र धनेश व पराक्रमेश के साथ पंचम में हो, तो ऐसा जातक काफी निम्न स्तर से जनता के मध्य राजनीति करते हुए, वर्ग विशेष के सहयोग से उच्च कूटनीतिज्ञ, महत्वाकांक्षी, जनता के बीच का उच्च राजनीतिज्ञ होकर उच्च राजकीय पदों को हासिल करता है।*
*यदि कुंडली में राजनीति कारक राहु पराक्रमेश सूर्य, जनता के घर के स्वामी चतुर्थ व लग्नेश बुध, संबंधों के घर सप्तम के स्वामी व दशमेश गुरु के साथ युति कर भाग्य भाव में हो तथा भाग्येश व जनता कारक शनि जनता के घर चतुर्थ में हो, साथ ही लाभेश मंगल की पंचमेश शुक्र से युति दशम भाव में हो, तो इन सब ग्रह जनित योगों संबंधों एवं प्रभावों के कारण ही जातक जनता में लोकप्रियता प्राप्त कर जन हितैषी होते हुए, सदैव जनता के हित में उनकी मांगों की आपूर्ति हेतु आवाज उठाने वाला एवं अन्याय के विरुद्ध सदा लड़ने को तत्पर, उच्च राजनीतिक सफलता प्राप्त राजनेता बनता है।*
*संक्षेेप में कहना है कि राजनीतिक बनने के ज्योतिषीय कारण उपरोक्त दर्शाये गये योगों के अतिरिक्त एक सफल राजनेता बनने के लिए वैसे तो समस्त नौ ग्रहों का शक्तिशाली होना अनिवार्य है, किंतु फिर भी सूर्य, मंगल, गुरु और राहु में चार ग्रह मुख्य रूप से राजनीति में सफलता प्रदान करने में सशक्त भूमिका अदा करते हैं साथ ही चंद्रमा का शुभ व पक्ष बली होना भी आवश्यक है। इसमें संदेह नहीं कि सूर्य ग्रह होने के साथ ही साथ मंगल से कुशल नेतृत्व तथा पराक्रम की प्राप्ति होती है।*
*गुरु पारदर्शी, निर्णय क्षमता एवं ज्ञान-शक्ति प्रदान करता है तथा राहु को ज्योतिष में शक्ति, साहस, शौर्य, पराक्रम, छल-कपट और राजनीति का कारक माना गया है। अतएव कुंडली में यदि ये चारों ग्रह शक्तिशाली एवं शुभ स्थिति में होंगे, तो ये एक सशक्त, प्रभावी, कर्मठ, जुझारू तथा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की बुनियाद पर एक सम्पूर्ण सरल एवं सशक्त राजनेता रूपी भवन का निर्माण करेंगे जिस पर राष्ट्र हमेशा गौरवान्वित रहेगा।*

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